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Chapter - 7 - संकल्पः सिद्धिदायकः

S.No.QUESTIONS
ANSWERS
नारदवचनप्रभावात् पार्वती शिवं पतिरूपेण इच्छन्ती तपस्यां कत्र्तुम् इच्छति स्म। सा स्वसंड्ढल्पं मात्रे न्यवेदयत्। तच्छ्रुत्वा पार्वत्याः माता चिन्ताकुला अभवत्। पुत्रयाः कोमलतनुं दृष्ट्वा जननी आदिशत्-‘वत्से! क्व कठिनं तपः क्व च तव कोमलं शरीरम्? कथम् आतपात् शीतात् वा आत्मानं रक्षिष्यसि? तर्हि तपः मा चर। सुखेन स्वगृहे एव वस। अत्रैव व्रतादिकं कुरु। एतेनैव तव मनोरथपूर्तिः भविष्यति।’ परन्तु पार्वती अकथयत्-‘‘अम्ब! शिवं पतिरूपेण प्राप्तुं तपस्यामेव करिष्यामि इति मे संड्ढल्पः। ईश्वरः मम रक्षां करिष्यति। तपस्यार्थं कोअपि न गृहे वसति।’’
भावार्थ- ब्रह्मा के बेटे नारद जी के वचनों से प्रभावित होकर पार्वती शिव भगवान को पति रूप में प्राप्त करने के लिए तप करने की इच्छा अपनी माता मैना के सामने जाहिर की | यह सुनकर माता मेना बहुत ज्यादा चिंतित हो गई | क्‍योंकि पार्वती को तपस्या के लिए घर से दूर किसी पर्वत पर जाना था | जहां पर रहने लायक कुछ भी नहीं था | बहुत ज्यादा ठंड थी , जंगली जानवर थे| जिससे पार्वती के प्राणों को खतरा था | पार्वती की माता ने कहा तुम्हें जिससे शादी करनी है यहीं पर करो | तपस्या बहुत कठिन होती है | तुम बहुत ज्यादा कोमल हो इसलिए तुम घर पर ही रहो | यहां पर ही तुम्हारी तपस्या सफल हो जाएगी| इस पर पार्वती ने कहा वैसी इच्छा ऐसे ही सफल नहीं हो जाती है माते ! उसके लिए तो मुझे तप करना ही पड़ेगा | माता के बहुत मना करने पर भी पार्वती नहीं मानी और अपने संकल्प पर कायम रही |
एवमुक्त्वा दृढनिश्चया सा पितृगृहं परित्यज्य कानने निर्मितां स्वपर्णकुटीम् अगच्छत् शिवं च अनन्यमनसा अपूजयत्, चिरं तपस्यां च समाचरत्। कानने ¯हिस्त्राः पशवः विचरन्ति स्म। तथापि पार्वती निर्भया वसति स्म। यतो हि निर्भयं जनम् ईश्वरः स्वयमेव रक्षति। कतिचित् मासाः गताः। एकदा कश्चित् वटुः तपोवनं प्राविशत्। वटुं दृष्ट्वा पार्वती आसनात् उत्थाय तमुपगम्य सादरम् अवदत्-‘‘वटो, स्वागतं ते। उपविशतु भवान्।’’
भावार्थ- वह अपनी सहेली विजया के साथ गौरी शिखर पर्वत पर तपस्या के लिए निकल पड़ी| पर्वत पर पहुंचने के पश्चात, पार्वती तन-मन से तपस्या में जुट गई | तपस्या करते-करते कभी वह पृथ्वी पर ही सो जाती और कभी पत्थर पर | उसकी तपस्या इतनी अच्छी हो गई कि जंगल के खूंखार जानवर भी उसके दोस्त बन गए | लेकिन फिर भी अभी तक वो अपनी संकल्प को हासिल नहीं कर पाई थी | मगर फिर भी वो अपनी धैर्य को नहीं तोड़ी और तपस्या करती रही | तपस्या कर रही पार्वती ने वेदो का अध्ययन किया तथा बहुत सारे यज्ञ भी संपन्‍न किए | जिस कारण से संसार में उनका नाम अपर्णा भी प्रसिद्ध हो चुका था | मगर फिर भी तपस्या का फल दिखाई नहीं पड़ रहा था | तभी एक वहां पर एक ब्रह्ममचारी आता है और पीने के लिए पानी मांगता है |विजया जल्दी से ब्रम्हचारी का स्वागत करती है और उन्हें बैठाती है | उसके बाद उन्हें पानी देती है और बताती है कि यह मेरी सखी पार्वती है | शिव को प्राप्त करने के लिए यहां तपस्या कर रही है | फिर ब्रह्ममचारी पार्वती से पूछता है कि कया यहां स्नान करने के लिए जल है? क्या यहां कुछ खाने के लिए फल है ? क्या यहां पूजा के लिए सामग्री है? ब्रह्ममचारी बोलता है कि सबसे पहला धर्म शरीर धर्म है |
वटुः कुशलं पृष्ट्वा कौतूहलेन अपृच्छत्-‘‘हे तपस्विनि! किमर्थं कठिनं तपः समाचरसि? स्वकीयां तनुं च मलिनां करोषि?’’ पार्वती न किन्चित् वदति स्म। तत्सखी एव तस्याः संकल्पस्य प्रयोजनं वटवे निवेदयति स्म। तत् श्रुत्वा वटुः अपृच्छत्-‘‘अयि पार्वति! ¯किं सत्यमेव त्वं शिवं पतिमिच्छसि यो हि अशिवं चरति, श्मशाने वसति? यस्य त्रीणि नेत्राणि, यस्य वसनं गजचर्म, यस्य अंगरागः चिताभस्म, यस्य परिजनाश्च भूतगणाः, ¯किं तमेव शिवं पतिम् इच्छसि?’’ शिवनिन्दां श्रुत्वा पार्वती क्रुद्धा जाता। सा अवदत्-‘‘अपसर अरे वाचाल! त्वं महश्ेवरस्य परमार्थस्वरूपमवे न जानासि। जनाः अनादिकालात ् संकल्पसिद्धये शिवमेव पूजयन्ति। तत् नोचितं त्वया सह सम्भाषणम्।’’ एवमुक्त्वा यदा सा प्रस्थानाय उद्यता, तावदेव शिवः वटोः रूपं परित्यज्य तस्याः मार्गम् अवरुध्य अवदत्-‘‘पार्वति! प्रीतोअस्मि तव संकल्पेन तपस्यया च।’’
भावार्थ- तत्पश्चात ब्रह्ममचारी पूछता है- किसके लिए तप कर रही हो | पार्वती चुपचाप खड़ी रहती है और कुछ भी नहीं बोलती है | फिर परेशान होकर विजया बोलती है - हां शिव के लिए तपस्या कर रही है| इस बात पर ब्रह्मचारी जोर-जोर से हंसने लगता है और बोलता है - क्या यह सही है कि तुम शिव को पति रूप में प्राप्त करना चाहती हो ? वह सिर्फ नाम से ही शिव है नहीं तो अशिव है ,वो शमशान में रहता है ,उसके तीन नेत्र हैं उसके वस्त्र बाघ के खाल हैं, अंग लेप चिता की राख है तथा भूत उसके दोस्त हैं | क्या उस शिव को तुम पति रूप में चाहती हो ? क्रोधित होकर पार्वती बोलती है - हट जा बड़बोले! संसार में कोई भी शिव के वास्तविक रूप को नहीं जानता | जैसे तुम हो वैसा ही बोलते हो | फिर विजया के तरफ देख कर बोलती है-चलो, जो निंदा करता है वह तो पापी होता ही है साथ में जो सुनता है वह भी पापी होता है | पार्वती तेज गति से वहां से निकल जाती है | तभी पीछे में खड़ा ब्रह्ममचारी , ब्रह्ममचारी रूप को त्यागकर शिव रूप में आ जाता है और पार्वती का हाथ पकड़ लेता है | पार्वती लज्जा से कांप जाती है | शिव बोलते हैं- है पार्वती! तुम्हारे संकल्प से मैं अति प्रसन्‍न हूं | आज से मैं तुम्हारा तपस्या के द्वारा खरीदा हुआ दास हूं | फिर पार्वती अपना मुंह नीचे करके मुस्कराती है |
Page-40-Q.1: उच्चारणं कुरुत-
विद्यार्थी स्वयं कर।
Page-40-Q.2: उदाहरणम् अनुसृत्य रिक्तस्थानानि पूरयत-
(क)
एकवचनम् ----- द्विवनम् ----- बहुवचनम्
वसति स्म----- वसत: स्म ----- वसन्ति स्म
पूजयति स्म ----- पूजयत: स्म ----- पूजयन्ति स्म
रक्षित स्म ----- रक्षत: स्म ----- रक्षन्ति स्म
चरति स्म ----- चरत: स्म ----- चरन्ति स्म
करोति स्म ----- कुरुत:स्म ----- कुर्वन्ति स्म

(ख)
पुरुषः----- एकवचनम् -----द्विवचनम् -----बहुवचनम्
प्रथमपुरुष: -----अकथयत् -----अकथयताम् -----अकथयन्
प्रथमपुरुष:----- अपूज़यत् -----अपूजयताम् -----अपूजयन्
प्रथमपुरुष: -----अरक्षत् -----अरक्षताम् -----अरक्षन्

(ग)
पुरुष: ----- एकवचनम् ----- द्विवचनम् ----- बहुवचनम्
मध्यमपुरुष: ----- अवस: ----- अवसतम् ----- अवसत
मध्यमपुरुष: ----- अपूजय: ----- अपूजयतम् ----- अपूजयत
मध्यमपुरुष: ----- अचर: ----- अचरतम् ----- अचरत

(घ)
पुरुष: ----- एकवचनम्----- द्विववनम् ----- बहुवचनम्
उत्तमपरुष:----- अपठम् -----अपठाव -----अपठाम
उत्तमपरुष:----- अलिखम् -----अलिखाव -----अलिखाम
उत्तमपरुष:----- अचरयम् -----अरचयाव -----अचरयाम
Page-41-Q.3: प्रश्नानाम् उत्तराणि एकपदेन लिखत-
(क) तपःप्रभावात् के सखायः जाताः?
(क) तपःप्रभावात् हिंस्रपशवोऽपि सखायः जाताः।

(ख) पार्वती तपस्यार्थं कुत्र अगच्छत्?
(ख) पार्वती तपस्यार्थं गौरीशिखरम् अगच्छत्।

(ग) कः श्मशाने वसति?
(ग) शिवः श्मशाने वसति।

(घ) शिवनिन्दां श्रुत्वा का क्रुद्धा जाता?
(घ) शिवनिन्दां श्रुत्वा पार्वती क्रुद्धा जाता।

(ङ) वटुरूपेण तपोवनं कः प्राविशत्?
(ङ) वटुरूपेण तपोवनं शिवः प्राविशत्।
Page-41-Q.4: कः/का कं/कां प्रति कथयति-
------------------------- कः ------ का
यथा- वत्से! तपः कठिनं भवति? ------>माता ------>पार्वतीम्
(क) अहं तपः एव चरिष्यामि? ------> पार्वती ------>मेनाम्
(ख) मनस्वी कदापि धैयँ न परित्यजति। ------> पार्वती ------> विजयाम्
(ग) अपर्णा इति नाम्ना त्वं प्रथिता। ------> विजया ------> पार्वतीम्
(घ) पार्वति! प्रीतोइस्मि तव सड़्कल्पेन | ------> शिवः ------> पार्वतीम्
(ड) शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् | ------>वटुः ------>विजयाम्
(च) अहं तव क्रीतदासोइस्मि |------>शिवः ------>पार्वतीम्
Page-42-Q.5: प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत-
(क) पार्वती क्रुद्धा सती किम् अवदत्?
(क) पार्वती क्रुद्धा सती अवदत् यत् अरे वाचाल! अपसर। जगति न कोऽपि शिवस्य यथार्थं स्वरुपं ति। यथा त्वमसि तथैव वदसि।

(ख) कः पापभाग् भवति?
(ख) शिवः निन्दा यः करोति श्रृणोति च पापभाग् भवति।

(ग) पार्वती किं कर्त्तुम् ऐच्छत्?
(ग) पार्वती तपस्यां कर्त्तुम् ऐच्छत्।

(घ) पार्वती कया साकं गौरीशिखरं गच्छति?
(घ) पार्वती विजयया साकं गौरीशिखरं गच्छति।

Page-42-Q.6: मञ्जूषातः पदानि चित्वा समानार्थकानि पदानि लिखत-
शिलायां ……………………. प्रस्तरे
पशवः …………………….जन्तवः
अम्बा …………………….माता
नेत्राणि ……………………. नयनानि
तूष्णीम् …………………….मौनम्
Page-42-Q.7:अधोलिखितपदेषु धातव: के सन्ति?
यथा वसति सम ---> अवसत।
(क) पश्यति सम ---> अपश्यत।
(ख) लिखति सम ---> अलिखत।
(ग) चिन्तयति सम ---> अचिन्तयत॒।
(घ) वदति सम ---> अवदतु।
(ड) गच्छति सम ---> अगच्छत।

यथा->अलिखत लिखति स्म।
(क) अकथयत् कथयति स्म।
(ख) अनयत् नयति स्म।
(ग)अपठत् पठति स्म।
(घ) अधावत् धावति स्म।
(ड)अहसत् हसति स्म।